मोबाइल फोन और इंटरनेट ने हमारी ज़िंदगी आसान बनाई है, लेकिन इसी सुविधा की आड़ में एक नया और खतरनाक अपराध तेजी से फैल रहा है — डिजिटल उगाही। हाल ही में डिजिटल उगाही पर आधारित एक पुस्तक के विमोचन समारोह में दिल्ली उच्च न्यायालय के माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री डी.के. उपाध्याय ने इस खतरे को लेकर गंभीर चिंता जताई।
उनका स्पष्ट कहना था —
“डिजिटल उगाही हर इंटरनेट उपयोगकर्ता पर एक छाया है।”
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि आज की हकीकत है।
कोई भी सुरक्षित नहीं
छात्र हों या गृहिणी, नौकरीपेशा हों या सेवानिवृत्त नागरिक — डिजिटल उगाही किसी को नहीं छोड़ रही। ईमेल, व्हाट्सऐप, सोशल मीडिया और वीडियो कॉल के ज़रिये अपराधी लोगों को डराते हैं, धमकाते हैं और मानसिक दबाव बनाकर पैसे वसूलते हैं।
कभी अश्लील कंटेंट के नाम पर, कभी फर्जी शिकायत का डर दिखाकर और कभी गिरफ्तारी की धमकी देकर पीड़ित को तोड़ दिया जाता है।
जब कानून के नाम पर ही धोखा दिया जाए
मुख्य न्यायाधीश ने एक और बेहद चिंताजनक पहलू की ओर इशारा किया।
उनके अनुसार —
“ये अपराध केवल पुलिस के लिए ही नहीं, बल्कि वकीलों और न्यायाधीशों के लिए भी चुनौती हैं।”
आज के ठग खुद को पुलिस अधिकारी, जज या सरकारी अफसर बताकर बात करते हैं।
वे क्या करते हैं:
- फर्जी गिरफ्तारी वारंट भेजते हैं
- नकली अदालत की मुहर का इस्तेमाल करते हैं
- IPC की धाराओं का हवाला देकर डर पैदा करते हैं
- FIR जैसे दिखने वाले दस्तावेज़ भेजते हैं
आम नागरिक के लिए असली और नकली में फर्क कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है। इससे न सिर्फ लोग ठगे जाते हैं, बल्कि न्यायपालिका की विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुंचता है।
बदलते साइबर अपराध और न्यायपालिका की भूमिका
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय ने साफ कहा कि आज के साइबर खतरे ऐसे हैं जिनकी कल्पना एक दशक पहले नहीं की जा सकती थी।
पारंपरिक सिस्टम अब पर्याप्त नहीं हैं।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अब जरूरी है:
- न्यायाधीशों और वकीलों को डिजिटल फ्रॉड की तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जाए
- पुलिस और साइबर विशेषज्ञों के साथ बेहतर तालमेल हो
- आम जनता को कानूनी प्रक्रियाओं की सही जानकारी दी जाए
- फर्जी न्यायिक दस्तावेज़ों और पहचान की चोरी पर तुरंत कार्रवाई हो
आम नागरिक क्या करें
डिजिटल उगाही से बचाव के लिए कुछ बुनियादी सावधानियां बेहद जरूरी हैं:
- किसी भी कॉल या मैसेज पर तुरंत डरें नहीं
- कोई भी अदालत या पुलिस पैसे की मांग फोन पर नहीं करती
- संदिग्ध दस्तावेज़ मिलने पर स्थानीय पुलिस या साइबर सेल से पुष्टि करें
- 1930 साइबर हेल्पलाइन या http://cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज करें
- अपनी निजी जानकारी और फोटो सोशल मीडिया पर सीमित रखें
निष्कर्ष
डिजिटल उगाही केवल एक साइबर अपराध नहीं, बल्कि डर और भ्रम का सुनियोजित खेल है। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की चेतावनी हमें बताती है कि अब सतर्क रहना विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है।
जागरूक नागरिक ही इस डिजिटल जाल को तोड़ सकते हैं।










