भारत में डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड साइबर अपराध का नया और बेहद खतरनाक रूप बन चुका है। इसमें ठग खुद को पुलिस, सीबीआई या ईडी अधिकारी बताकर लोगों को मानसिक दबाव में डालते हैं और उन्हें “डिजिटल अरेस्ट” में होने का डर दिखाते हैं। नतीजा यह होता है कि पीड़ित डर के कारण अपनी जमा पूंजी मिनटों में ठगों के खातों में ट्रांसफर कर देता है।
ऐसे मामलों में एक बात साफ है —
अगर बैंक कर्मचारी समय पर सतर्क हो जाएं, तो यह साइबर धोखाधड़ी रोकी जा सकती है।
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड क्या है और यह इतना खतरनाक क्यों है
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड या डिजिटल अरेस्ट साइबर धोखाधड़ी में ठग फोन या वीडियो कॉल पर खुद को कानून प्रवर्तन एजेंसी का अधिकारी बताते हैं। वे मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स या किसी फर्जी केस का डर दिखाते हैं और पीड़ित को कहते हैं कि वह जांच पूरी होने तक किसी से बात न करे।
डर और जल्दबाजी के इसी माहौल में ठग
- OTP मांगते हैं
- नए खातों में पैसे ट्रांसफर कराते हैं
- म्यूल अकाउंट्स के जरिए रकम गायब कर देते हैं
हालिया घटनाएँ: हैदराबाद, तेलंगाना और गुरुग्राम से क्या सबक मिले
🔹 हैदराबाद और तेलंगाना
यहां साइबर अपराध इकाइयों और सतर्क बैंक कर्मचारियों ने मिलकर बुजुर्ग नागरिकों को निशाना बनाने वाले बड़े डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड को रोका। समय रहते ट्रांजैक्शन रोके गए, जिससे लाखों से करोड़ों रुपये का नुकसान टल गया।
🔹 गुरुग्राम (2025 के मामले)
- ₹78.9 लाख का मामला
70 वर्षीय महिला को फर्जी पुलिस कॉल के जरिए घर में बंद रहने को कहा गया। बैंक अधिकारियों ने असामान्य निकासी देखकर तुरंत हस्तक्षेप किया और ठगी रुक गई। - ₹5.85 करोड़ का मामला
एक अन्य महिला ने कुछ ही समय में करोड़ों रुपये ट्रांसफर कर दिए। बाद में सवाल उठा कि इतनी असामान्य गतिविधि को पहले क्यों नहीं रोका गया। यह मामला सक्रिय निगरानी की जरूरत को उजागर करता है।
डिजिटल अरेस्ट साइबर धोखाधड़ी में बैंक क्यों बनते हैं पहली सुरक्षा दीवार
बैंक इस फ्रॉड के खिलाफ सबसे मजबूत स्थिति में होते हैं, क्योंकि उनके पास ऐसे अधिकार और जानकारी होती है जो किसी और के पास नहीं।
- लेनदेन की रीयल टाइम निगरानी
- KYC डेटा और खाता इतिहास
- खाते फ्रीज़ या होल्ड करने की क्षमता
- ग्राहक से सीधा संपर्क, खासकर बुजुर्गों के साथ
यही कारण है कि बैंक कर्मचारी डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड के खिलाफ पहली रक्षा पंक्ति हैं।
डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड में ठग कौन से तरीके अपनाते हैं
- पुलिस, ईडी या सीबीआई बनकर कॉल
- वीडियो कॉल पर धमकी और फर्जी दस्तावेज
- “तुरंत ट्रांसफर नहीं किया तो गिरफ्तारी” का डर
- म्यूल खातों में तेज़ इनबाउंड और आउटबाउंड ट्रांजैक्शन
बैंक कर्मचारियों के लिए त्वरित और प्रभावी कदम
1️⃣ फ्रंटलाइन जागरूकता
कर्मचारियों को यह पहचानना सिखाया जाए कि
- ग्राहक डर में है
- कॉल के दौरान OTP मांगा गया है
- ट्रांजैक्शन के लिए असामान्य जल्दबाजी है
2️⃣ म्यूल अकाउंट पर सख्ती
- नए खातों में अचानक बड़ी रकम
- तेज़ इनबाउंड और आउटबाउंड ट्रांसफर
3️⃣ KYC और पुनः सत्यापन
- लाइव वीडियो या बायोमेट्रिक वेरिफिकेशन
- संदिग्ध खातों की दोबारा जांच
4️⃣ कमजोर ग्राहकों की सुरक्षा
- बुजुर्ग और हाई-रिस्क ग्राहकों को टैग करना
- संदिग्ध ट्रांजैक्शन पर तुरंत कॉल बैक
5️⃣ ट्रांजैक्शन थ्रॉटलिंग
- हाई वैल्यू ट्रांसफर पर अस्थायी सीमा
- मल्टी फैक्टर ऑथेंटिकेशन
संगठनात्मक और नीतिगत उपाय
- केंद्रीय फ्रॉड यूनिट को ट्रांजैक्शन रोकने का अधिकार
- दबाव वाले मामलों के लिए स्पष्ट SOP
- साइबर पुलिस के साथ नियमित संयुक्त अभ्यास
- ग्राहकों के लिए आसान “स्टॉप पेमेंट / वेरिफाई” हेल्पलाइन
शाखा कर्मचारियों के लिए त्वरित चेकलिस्ट
- कॉल करने वाला पुलिस या ईडी बताए → ट्रांजैक्शन रोकें
- बुजुर्ग या घबराया ग्राहक → व्यक्तिगत सत्यापन करें
- नया लाभार्थी और तेज़ ट्रांसफर → KYC दोबारा जांचें
- कुछ घंटों में कई आउटवर्ड ट्रांसफर → खाता फ्रीज़ करें
रोकथाम ही असली सुरक्षा है
हैदराबाद, तेलंगाना और गुरुग्राम की घटनाएं साफ दिखाती हैं कि डिजिटल अरेस्ट फ्रॉड को रोका जा सकता है, अगर बैंक कर्मचारी प्रशिक्षित और सतर्क हों।
मजबूत KYC, स्मार्ट मॉनिटरिंग, कमजोर ग्राहकों की सुरक्षा और साइबर पुलिस के साथ तेज़ समन्वय इस साइबर ठगी को काफी हद तक कम कर सकता है।
आज जरूरत सिर्फ पैसे लौटाने की नहीं, बल्कि ठगी होने से पहले उसे रोकने की है।
यही सक्रियता आम नागरिकों की सबसे बड़ी ढाल है।










