motivational speech: बिहार के सहरसा में गायत्री पीठ द्वारा आयोजित व्यक्तित्व सत्र को संबोधित करते हुए डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने कहा कि आज संसार में जो सारी लड़ाई जो है वह अहंकार की लड़ाई है स्वार्थ की लड़ाई है। समस्या तो इंसान की यही है ना कह सकते हैं कि सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट बनने के चक्कर में पूरी तरह डिस्ट्रॉय हो गया। ज़िंदगी की तलाश में अब मौत के कितने करीब आ गए, नहीं, मौत के करीब ही नहीं आए मौत में ही समा गए।
motivational speech in hindi
उन्होंने कहा कि अहंकार की तलाश में हमने मौत तलाश लिया। रूस की क्या समस्या है? यूक्रेन की क्या समस्या है? चीन की क्या समस्या है? अमेरिका की क्या समस्या है विस्तारवाद। कारण है स्वार्थ स्वार्थ और अहंकार। इंसान को सफलता मिले और वह पगलाए नहीं ये बहुत विरल घटना है। आत्मा तो सफलता और असफलता से परे है। आत्मा को कोई फर्क नहीं पड़ता। सफलता का क्रेडिट अहंकार लेता है।
अहंकार का क्रेडिट अहंकार को
डा. अरूण जायसवाल ने कहा कि अहंकार करते समय ये नहीं होता कि सफल होगा या असफल होगा, सम्मान मिलेगा या अपमान मिलेगा, और अगर मिल जाता है तो क्रेडिट अहंकार लेता है, अहंकार अपनी मुहर लगाता है। ध्यान रखें करते समय अहंकार नहीं होता, करते समय जो अहंकार करता है वह काम तो खराब ही हो जाता है। करते समय बस प्रयत्न किया जाता है पूरे मनोयोग पूर्वक, अंतर्भाव से तब सफलता मिलती है। लेकिन क्रेडिट अंतर्भाव को नहीं मिलता है, अंतर्भाव का कोई योगदान नहीं है, फटाक से अहंकार खड़ा हो जाता है कि मैंने किया मैंने किया।
देवासुर संग्राम में भी यही बात
पूरी बात का मतलब समझाते हुए डा. जायसवाल ने कहा कि देवासुर संग्राम में जब जहर निकला किसी ने क्रेडिट नहीं लिया पर जब अमृत निकला तो देवता और असुर दोनों क्रेडिट लेने के लिए तर्क देने लगे, झगड़ा करने लगे। अहंकार का अगर पर्यायवाची शब्द, समानार्थी शब्द क्या है? तो अविवेक है। जितना अहंकार उतना अविवेका अहंकार का परिणाम क्या है? असफलता में अवसाद और सफलता में उन्माद जीवन में अपना कल्याण चाहते हैं तो आपको अपनी चेतना में ईश्वर की धारणा करनी पड़ेगी।
उन्होंने कहा आपके मन में ईश्वर की धारणा नहीं है तो आपका न कोई विकास है, और न कोई उन्नति है। एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति बनी तो बायोलोजी में कहते हैं उसको म्यूटेशन, म्यूटेट होने लगी कोशिका, डेवलप होने लगा सेला कैंसर में भी तो म्यूटेशन हीं होता है। पतंजलि का विकास क्या है? जात्यान्तरण। अपने स्वरूप में प्रतिष्ठित होना, यही है विकासवाद का चरमा मूल बात है ईश्वर की धारणा से हम डिगे नहीं। फिर ट्रांसपर्सनल हो जाता है, बियॉन्ड पर्सनैलिटी व्यक्तित्व के पार उतर जाता है। व्यक्तित्व में परिवर्तन ही नहीं रूपांतरण हो जाता है। तो मूल बात है कि ईश्वर की धारणा करें। क्योंकि भगवान का भी अंत नहीं है और संसार का भी अंत नहीं है। संसार की सघनता और प्रगाढ़ता से बाहर निकलना होगा।
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