जानिए शिव मंदिर में नंदी के कान में ही क्यों मांगते हैं मनोकामना

शिव मंदिर में आपने कई लोगों को नंदी के कान में कुछ कहते देखा होगा। लोग नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। यह एक परंपरा बन चुकी है। जानिए कि ऐसी कौन सी मान्यता है जिसने इस परंपरा को जन्म दिया।

0
260

Shiv Mandir Nandi-शिव मंदिर में आपने कई लोगों को नंदी के कान में कुछ कहते देखा होगा। लोग नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहते हैं। यह एक परंपरा बन चुकी है। जानिए कि ऐसी कौन सी मान्यता है जिसने इस परंपरा को जन्म दिया।

इसलिए नंदी के कान में कहते हैं मनोकामना

जहां भी शिव मंदिर होता है, वहां नंदी की स्थापना भी जरूर की जाती है क्योंकि नंदी भगवान शिव के परम भक्त हैं। जब भी कोई व्यक्ति मंदिर में आता है तो वह नंदी के कान में अपनी मनोकामना कहता है। इसके पीछे मान्यता है कि भगवान शिव तपस्वी हैं और वे हमेशा समाधि में रहते हैं। ऐसे में उनकी समाधि और तपस्या में कोई विघ्न ना आए। इसलिए नंदी ही हमारी मनोकामना शिवजी तक पहुंचाते हैं। इसी मान्यता के चलते लोग नंदी को लोग अपनी मनोकामना कहते है

शिव के ही अवतार हैं नंदी

कहा जाता है कि शिलाद नाम के एक मुनि थे, जो ब्रह्मचारी थे। वंश समाप्त होता देख उनके पितरों ने उनसे संतान उत्पन्न करने को कहा। शिलाद मुनि ने संतान भगवान शिव की प्रसन्न कर अयोनिज और मृत्युहीन पुत्र मांगा। भगवान शिव ने शिलाद मुनि को ये वरदान दे दिया। एक दिन जब शिलाद मुनि भूमि जोत रहे थे, उन्हें एक बालक मिला। शिलाद ने उसका नाम नंदी रखा। एक दिन मित्रा और वरुण नाम के दो मुनि शिलाद के आश्रम आए। उन्होंने बताया कि नंदी अल्पायु हैं। यह सुनकर नंदी महादेव की आराधना करने लगे। प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और कहा कि तुम मेरे ही अंश हो, इसलिए तुम्हें मृत्यु से भय कैसे हो सकता है? ऐसा कहकर भगवान शिव ने नंदी का अपना गणाध्यक्ष भी बनाया।
शिव भक्तों की मानें तो नंदी ही एक ऐसा माध्यम हैं जो कभी किसी के साथ भेद भाव नहीं करते हैं और साफ़ शब्दों में संदेश शिव जी तक पहुंचाते हैं। यही वजह है कि उन्हें भगवान का संदेश वाहक भी कहा जाता है। नंदी शिवजी के प्रमुख गण हैं, इसलिए भगवान शिव भी उनकी बात मान लेते हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव माता पार्वती के साथ ध्यान कर रहे थे और नंदी जी ने फैसला किया कि वह भी उनके साथ ध्यान में लीन होंगे। उस समय वह तपस्या में भगवान शिव के सामने बैठ गए और इसी वजह से नंदी की मूर्ति हमेशा भगवान शिव के सामने रहती है। एक समय जालंधर राक्षस से बचने के लिए सभी भक्त जन शिव जी के पास गए। वो तपस्या में लीन थे और गणपति भी संदेश भगवान शिव तक पहुंचाने में असमर्थ थे।
उस समय गणपति ने भी संदेश नंदी के माध्यम से ही शिव जी तक पहुंचाया। तभी से ये मान्यता है कि यदि हम अपनी कोई भी मनोकामना नंदी के माध्यम से भगवान शिव तक पहुंचाते हैं तो वह अवश्य पूरी होती है। वहीं यदि भगवान शिव के साथ नंदी बैल की पूजा नहीं की जाती है तो भगवान शिव की पूजा अधूरी रहती है।

डिस्क्लेमर

”इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना में निहित सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्म ग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारी आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना के तहत ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now