जब हम राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं, तो ज़्यादातर लोगों के दिमाग में सीमा पर तैनात सैनिकों की तस्वीर आती है। लेकिन सच यह है कि देश पर खतरे हमेशा बंदूक के साथ नहीं आते। कई बार वे लैपटॉप, फर्जी अकाउंट्स और एन्क्रिप्टेड चैट के जरिए भी हमला करते हैं।
आज लड़ाई केवल जमीन पर नहीं, दिमागों पर भी लड़ी जा रही है। और इसी मोर्चे पर साइबर पेट्रोलिंग और डिजिटल सतर्कता हमारी सबसे मजबूत ढाल बनकर सामने आई हैं।
इंटरनेट पर दुश्मन कैसे काम करते हैं क्यों जरुरी है साइबर पेट्रोलिंग और डिजिटल सतर्कता
आप हैरान होंगे, लेकिन
फेसबुक, टेलीग्राम, ट्विटर और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म सिर्फ मनोरंजन या चर्चा का मंच नहीं रहे। इन्हीं जगहों पर:
• युवाओं को गैंग और चरमपंथी समूहों में भर्ती किया जा रहा है
• फर्जी वीडियो और दुष्प्रचार से हिंसा और नफरत भड़काई जा रही है
• सीमापार संगठनों द्वारा भारतीय संस्थाओं और सरकार के खिलाफ झूठ फैलाया जा रहा है
• जासूसी नेटवर्क डिजिटल फुटप्रिंट के जरिए ऑपरेशन चला रहे हैं
जो लोग कभी हथियार नहीं उठा सकते थे, वे अब केवल स्मार्टफोन उठाकर देश के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।
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डिजिटल सतर्कता का मतलब सिर्फ मॉनिटरिंग नहीं
बहुत लोगों को लगता है कि डिजिटल निगरानी मतलब पोस्टों की जांच। लेकिन वास्तविक डिजिटल सतर्कता इससे कहीं आगे जाती है।
यह तीन मोर्चों पर काम करती है:
1. संदिग्ध विचारों की पहचान
AI आधारित सिस्टम यह समझते हैं कि कौन सा कंटेंट केवल बहस है और कौन सा कट्टरता, हिंसा या राष्ट्रविरोध को बढ़ावा दे रहा है।
2. डिजिटल लोकेशन और गतिविधियों के सुराग
कभी पोस्ट का समय, कभी भाषा, कभी लोकेशन टैग
इन्हीं छोटे सुरागों से तस्करी, हदपार कनेक्शन और स्लीपर सेल के पैटर्न सामने आते हैं।
3. खतरे को समय रहते खत्म करना
यदि डिजिटल चुनौती को ऑफलाइन रूप लेने से पहले रोक दिया जाए, तो हिंसा, फंडिंग और नेटवर्किंग वहीं खत्म हो जाती है।
यानी साइबर पेट्रोलिंग का लक्ष्य केवल देखना नहीं, बचाना है।








