motivational speech: गुरुओं ने हमेशा सच्चा मार्ग दिखाया हैःअरुण जायसवाल

motivational speech: बिहार के सहरसा में स्थित गायत्री शक्तिपीठ गुरु पूर्णिमा महोत्सव धूम-धाम से मनाया गया। इस अवसर पर डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने गुरु पूर्णिमा के महत्व और गुरुओं के मार्गदर्शन पर प्रकाश डाला।

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motivational speech: बिहार के सहरसा में स्थित गायत्री शक्तिपीठ गुरु पूर्णिमा महोत्सव धूम-धाम से मनाया गया। इस अवसर पर डाक्टर अरुण कुमार जायसवाल ने गुरु पूर्णिमा के महत्व और गुरुओं के मार्गदर्शन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि गुरुओं ने हमेशा सच्चे मार्ग पर प्रकाश डाला है।

motivational speech: गुरु पूर्णिमा का महत्व

अरुण जायसावल ने गुरु पूर्णिमा के संबंध में कहा कि हृदय की भटकन को दूर कर, शाश्वत पथ का दिग्दर्शन कराने गुरु पूर्णिमा का प्रकाश पर्व पुनः आ पहुंचा है। पृथ्वी की सभ्यता का सदियों, सहस्राब्दियों, लक्षाधिक वर्षों का इतिहास गवाह है कि मानवी बुद्धि जब-जब भटकी है, भ्रमित हुई है, विश्वगुरु उसे चेताते रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मानवी पुरुषार्थ जब-जब दिशाविहीन हुआ है, गुरु उसे मार्गदर्शन देते रहे हैं। उनके लिए जाति, धर्म, धरती के किसी भूखण्ड की सीमा अवरोध नहीं बनी, सृष्टि का कण-कण उनके प्रेमपूर्ण बोध से लाभान्वित होता रहा है। कृष्ण, ईसा, बुद्ध, जरथुस्त्र, मुहम्मद, महावीर, व्यास, वाल्मीकि के रूपों में वे ही शाश्वत गुरु भगवान महाकाल मटकी हुई मानवता को दिशाबोध कराते रहे हैं। इनके अनुदानों के प्रति सहज कृतज्ञ भारतीय जनमानस प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा को इनके प्रति अपनी भावांजलि अर्पित करता है।

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श्री जायसवाल ने कहा कि नाम-रूपों की भिन्नता के बावजूद देश, काल, परिस्थिति के अनुरूप समाधान का बोध कराती हुई उन्हीं विश्वगुरु की एकमेव चेतना ही मुखरित होती रही। कौरवों के विनाशकारी आतंक से सिसकती, कराहती मनुष्यता को त्राण दिलाने वाले दिग्भ्रमित पाण्डवों को गीताज्ञान का उपदेश देने वाले श्रीकृष्ण ‘कृष्णं वन्दे जगद्‌गुरु कहकर पूजित किए गए। दार्शनिक भ्रम जंजालों, तरह-तरह की मूढ़ मान्यताओं में उलझी-फंसी मनुष्यता को महर्षि व्यास ने समाधान के स्वर दिए।

चार वेद षड्दर्शन एवं अठारह पुराणों के विशालतम विचारकोष को पाकर मानवता ने उन्हें लोकगुरु के रूप में स्वीकारा। यह कृतज्ञता इस तरह मुखरित हुई कि गुरु पूर्णिमा व्यास पूर्णिमा का पर्याय बन गयी।

आज जब पुनः धर्म मूढ़ताओं से ग्रस्त है। चित्र-विचित्र मान्यताओं, कुरीतियों, कुप्रथाओं की मेघमालाओं ने इस सूर्य को आच्छादित कर लिया है। व्यक्ति और समाज के पास प्रश्न तो अनेको हैं, पर हैं वे अनुत्तरित ही। समस्याएँ हैं, पर समाधान का बोध नहीं। बोध के अभाव में पनपे अलगाव, आतंक अस्थिरता और अव्यवस्था से जर्जरित मानव सभ्यता न केवल त्रस्त है, बल्कि भयग्रस्त हो सहमी खड़ी है।

उसे आशंका है कि पतन और विनाश कहीं उसे अपनी मृत्यु पाश में न बाँध ले। सामाजिक, राजनैतिक, आध्यात्मिक, साँस्कृतिक सब और एक-सी स्थिति है, प्रश्न ही प्रश्न हैं. समाधानविहीन प्रश्न। जिनसे समाधान की आशा रखी गयी थी, वे विज्ञान और अन्तर्राष्ट्रीय विधान अपनी असमर्थता का अहसास कर विवश है।

इन व्यथापूर्ण क्षणों में व्याकुल मानवता के हृदय में फिर से विश्वगुरु के लिए पुकार उठी है उन्हीं विश्वगुरु के लिए जिनकी वन्दना में गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- ‘वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररुपिणम् जो स्वयं बोधस्वरूप है, शाश्वत गुरु हैं, स्वयं सृष्टि के सूत्र संचालक महाकाल हैं।

मानवीय असमर्थता, असहायता को उनके सिवा और दूर भी कौन कर सकता है ? उन्होंने ही तो ऐसे अवसर पर भटकी मनुष्यता को राह दिखाने के लिए ‘तदात्मानं सृजाम्यहम् का संकल्प लिया है। उसी संकल्प को पूर्ण करते हुए प्रश्नों से आकुल संसार में भटकी मनुष्यता के लिए पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का व्यक्तित्व समाधान का पर्याय बनकर अवतरित हुआ जिन्हें हम श्रद्धापूर्वक परमपूज्य गुरुदेव कहकर पुकारते हैं। वे वह उन विरल प्रज्ञपुरुषों में थे, जिनमें ऋषित्व व मनीषा एकाकार थे।

आध्यात्मिक साधना से उपजा उनका चिन्तन विचारों के इतिहास में क्रान्ति होते हुए भी किसी भी विचार का स्थान नहीं ग्रहण करता, बल्कि उसे आदर देकर पहले की अपेक्षा कहीं अधिक उपादेय बनाता है। वे आज भी एक अपूर्व प्रकाश स्तम्भ के रूप में लाखों लोगों को प्रकाश दे रहे हैं। अतः हम सभी को इस गुरु पूर्णिमा को हर्षोल्लासपूर्वक मनाते हुए उनके द्वारा प्रदत्त विचारों का अर्चन करना चाहिए।

यही हमारे प्रश्नों का उत्तर देगा और समस्याएँ अपने समाधान का बोध पा सकेंगी। आप सभी को गुरु पूर्णिमा की मंगलकामनाएँ।
संध्याकालीन गुरु पूर्णिमा महोत्सव दीपयज्ञ के साथ संपन्न हुआ। दिनभर अखंडअप हुए। इस अवसर पर गुरू दीक्षा संस्कार एवं पुंसवन संस्कार हुश
विशेष-13-7-25 रविवार को भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा का प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार दिया जायेगा। गुरु पूर्णिमा पर्व का कर्मकांड मनीषा दीप्ति एवं स्वर्णना द्वारा कराया गया एवं मुख्य यजमान आनंद चेतन एवं ज्योति सपत्नीक थे ।इस अवसर पर सभी गायत्री परिजन उपस्थित थे

कार्यक्रम के दौरान गायत्री शक्तिपीठ के सदस्यों ने गुरुओं के प्रति अपने सम्मान और आभार को विभिन्न तरीकों से व्यक्त किया। गुरुओं के प्रति समर्पण और उनकी शिक्षाओं को जीवन में उतारने का संकल्प लिया गया।
गायत्री शक्तिपीठ के इस आयोजन ने गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को पुनः रेखांकित किया और समाज में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने का कार्य किया।

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