chambal की सबसे क्रूर दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन की असली कहानी

chambal kusuma
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chambal की सबसे क्रूर दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का आखिरकार निधन हो गया। कुसुमा को chambal की सबसे क्रूर दस्यु सुंदरी ऐसे ही नहीं कहा जाता था। उसकी क्रूरता के किस्से सुनकर आपके भी रोगंटे खड़े हो जाएंगे। उम्र कैद की सजा काट रही कुसुमा की मौत सैफई अस्पताल में हुआ। वह इटावा के जेल में थी तबियत खराब होने की वजह से उसे सैफई में भर्ती किया गया था।

कुसुमा ऐसे बनी थी chambal की दस्यु सुंदरी

कुसुमा नाइन का जन्म साल 1964 में यूपी के जालौन के टिकरी गांव में हुआ था। उसने स्कूल जाना शुरू किया मगर कुछ समय बाद ही उसे एक लड़के से प्यार हो गया। थोड़ी बड़ी होते ही वह अपने प्रेमी माधव मल्लाह के साथ भाग गई। लेकिन उसे दिल्ली में पकड़ लिया गया। माधव पर डकैती का मुकदमा लगा और पिता ने कुसुमा की शादी केदार नाई से कर दी। माधव चंबल के कुख्यात डकैत विक्रम मल्लाह का साथी था। विक्रम का नाम फूलन से जुड़ता था।

ससुराल से अगवा

माधव को जब कुसुमा की शादी की खबर लगी तो उसने अपने गैंग के साथ उसके ससुराल पर धावा बोल दिया। कुसुमा को अगवा कर माधव अपने साथ ले गया। इस तरह कुसुमा विक्रम मल्लाह से जुड़ी। इस दौरान उसे फूलन के जानी दुश्मन लालाराम को मारने का काम सौंपा गया। मगर कुसुमा का फूलन से अनबन गहो गया और वह लालराम के साथ ही जुड़ गई। इसके बाद उसने विक्रम मल्लाह को ही मरवा दिया।

इसी कुसुमा नाइन और लालराम ने कुख्यात दस्यु सीमा परिहार का अपहरण किया था। साल 1981 में फूलन देवी ने बेहमई कांड को अंजाम दिया था। इसी कांड के बाद फूलन से सरेंडर कर दिया था। इसी के बाद कुसुमा नाइन क्रूर और कुख्यात होती चली गई। वह अपनी क्रूरता के लिए बहुत कुख्यात थी। वह किसी को भी जिंदा जला देती थी। अगवा किए हुए शख्स को वह जंजीरो में बांध कर उसे हंटर से पीटती थी। किसी की आंखे निकाल लेना भी उसकी क्रूरता की सूची में शामिल है।

15 को लाइन में खड़ा कर मार दी थी गोली

साल 1985 में कुसुमा का नाम तब सुर्खियों में आ गया जब उसने बेहमई कांड की तर्ज पर 15 मल्लाहों को लाइन में खड़ा कर गोली मार दी थी। इसी के बाद उसकी लालाराम से अनबन हो गई वह रामाश्रय तिवारी उर्फ फक्कड़ बाबा जैसे डाकू के साथ जुड़ गई। उस पर एक रिटायर्ड एडीजी सहित कई पुलिसवालों की हत्या का भी आरोप था। कई सालों बाद उसका बीहड़ों से मन उचट गया। साल 2004 में कुसुमा और फकक्ड़ ने पूरे गैंग के साथ सरेंडर कर दिया।

यह ऐसा पहला सरेंडर होगा जिसमें किसी की मध्यस्थता नहीं थी। इस गैंग ने उस समय कई अमरीकी हथियार भी पुलिस को सौंपे थे। उस तरह का हथियार रखना अपने आप में इस डाकू गैंग के खतरनाक होने के सबूत थे। मगर समय किसी को नहीं छोड़ता जेल में कुसुमा को टीबी हुआ और आखिरकार अस्पताल में उसकी दर्दनाक मौत।

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