दिल्ली दंगो से लेकर गैंग और गैंगवार तक के बारे में विस्तृत खुलासा पूर्व पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने किया है। http://indiavistar.com के साथ बातचीत की तीसरी कड़ी में पूर्व पुलिस कमिश्नर ने आलोक वर्मा के साथ बातचीत में बताया कि कैसे दंगो को काबू करने के बाद कई महीने से तनाव झेल रहे दिल्ली वालों और पुलिसवालों के लिए दिल की पुलिस का नारा दिया गया।
दिल की पुलिस की कहानी देखिए वीडियो इंटरव्यू में
दिल की पुलिस से लेकर गैंग और गैंगवार तक के बारे में दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिश्नर एस एन श्रीवास्तव ने विस्तार से खुलासा किया है। दिए गए वीडियो लिंक से आप उनका पूरा इंटरव्यू विस्तार से सुन सकते हैं। बातचीत कीी पहले की दो कड़ियों का लिंक भी इसी पोस्ट में है। अपने इंटरव्यू में एस एन श्रीवास्तव ने बताया है कि दंगो को काबू करने के बाद जांच की तैयारी कैसे की गई।
इस वीडियो इंटरव्यू में उन्होंने बताया है कि दिल्ली पुलिस को दिल की पुलिस का नाम कैसे दिया गया। यही नहीं उन्होने कोरोना काल में दिल्ली पुलिस कैसे कार्य करती थी इस बारे में भी विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने कहा कि पूर्वी दिल्ली में दंगो के बाद आम लोगों के लिए केस दर्ज करवाने का विकल्प खुला रखा गया। यही वजह है कि दंगो के मामले में दर्ज केस की संख्या काफी हो गई थी।
इसके बाद चुनौती इन केस की जांच की थी। साजिश की जांच के लिए स्पेशल सेल में केस दर्ज किया गया। कुछ केस क्राइम ब्रांच में दिए गए। एसएचओ एसीपी की भागीदारी सुनिश्चित की गई। यही नहीं कई औऱ कदम उठाए गए जिससे आरोपियों को जल्दी से जल्दी सजा हो। जांच की गुणवत्ता के लिए ही सारे कदम उठाए गए थे। दिल्ली दंगे के बाद अफसरों के साथ चर्चा में दिल की पुलिस का नाम आया था।
अपने इंटरव्यू में उन्होने बताया है कि लापता बच्चों के मामले बहुत ज्यादा उपेक्षित होते थे। कई मामले तो कोर्ट के माध्यम से भी सामने आए। इसी को लेकर लापता बच्चों की तलाश के लिए एक विशेष पॉलिसी बनाई गई थी। इसके तहत एक साल में 50 बच्चों की तलाश कर लेने वाले को बिना बारी के प्रोन्नति दी जाती थी। गैंग और गैंगवार से निपटने के लिए 15 जिलों के स्पेशल स्टाफ पर विशेष दवाब दिया गया। इसी का नतीजा था कि कई बार स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच से ज्यादा बड़ा काम स्पेशल स्टाफ कर लेता था।
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