ग़ज़ल

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corona

कॉरोना की शक्ल में ढला है
लाइलाज़ यह कौन सी बला है

फ़ासले-दर-फ़ासले बढ़ा दिए जिसने
क्या – क्या मंसूबे लेकर चला है

मौत का शैल – ए – आब जैसे
अयाँ ख़रोश ज़लज़ला है

मुसल्सल गर्दिश – ए – ज़ाँ और जहाँ
क़यामत का सिलसिला है

माँ वो माँ अभागन ही होगी
जिसकी कोख़ में ये कम्बख़्त पला है

कितना और ढहाएगा क़हर
न जाने कैसा मसअला है

मंज़र देखकर तो यही लगता है ‘यश’
यह बला से भी बड़ी बला है

सुख़नवर
डाॅ.यशोयश
कवि एवं साहित्यकार , आगरा

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