कॉरोना की शक्ल में ढला है
लाइलाज़ यह कौन सी बला है
फ़ासले-दर-फ़ासले बढ़ा दिए जिसने
क्या – क्या मंसूबे लेकर चला है
मौत का शैल – ए – आब जैसे
अयाँ ख़रोश ज़लज़ला है
मुसल्सल गर्दिश – ए – ज़ाँ और जहाँ
क़यामत का सिलसिला है
माँ वो माँ अभागन ही होगी
जिसकी कोख़ में ये कम्बख़्त पला है
कितना और ढहाएगा क़हर
न जाने कैसा मसअला है
मंज़र देखकर तो यही लगता है ‘यश’
यह बला से भी बड़ी बला है
सुख़नवर
डाॅ.यशोयश
कवि एवं साहित्यकार , आगरा