भारत में WhatsApp अकाउंट्स क्यों हो रहे हैं बड़े पैमाने पर बंद?
सिम बाइंडिंग और WhatsApp धोखाधड़ी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। WhatsApp ने अक्टूबर 2025 तक औसतन 9.8 मिलियन भारतीय अकाउंट्स हर महीने बंद किए। ये कार्रवाई स्पैम, धोखाधड़ी, फेक पहचान और नीति उल्लंघन जैसे व्यवहारिक संकेतों के आधार पर हुई।
लेकिन एक बड़ी दिक्कत बनी हुई है:
- WhatsApp बंद किए गए अकाउंट्स के मोबाइल नंबर साझा नहीं करता
- जांच एजेंसियों को यह पता नहीं चल पाता कि असल सिम कौन सी थी
- नए सिम लेकर वही धोखेबाज़ फिर सक्रिय हो जाते हैं
यहीं से सिम बाइंडिंग की जरूरत सामने आती है।
सिम बाइंडिंग क्या है?
सिम बाइंडिंग एक सुरक्षा तकनीक है जिसमें किसी ऐप अकाउंट को
डिवाइस में मौजूद वास्तविक, सक्रिय और टेलीकॉम-प्रमाणित सिम कार्ड से जोड़ा जाता है।
इसका मतलब साफ है:
जिस नंबर से अकाउंट बना है, वही सिम उसी डिवाइस पर मौजूद होनी चाहिए।
सिम बाइंडिंग WhatsApp धोखाधड़ी कैसे रोकती है?
1️⃣ नकली और निष्क्रिय नंबरों पर रोक
धोखेबाज़ अक्सर रीसायकल्ड, वर्चुअल या निष्क्रिय नंबरों का इस्तेमाल करते हैं।
सिम बाइंडिंग केवल सक्रिय और KYC-प्रमाणित सिम को ही मान्यता देती है।
2️⃣ डिवाइस क्लोनिंग और सेशन हाईजैकिंग से सुरक्षा
चोरी किए गए OTP या बैकअप से अकाउंट क्लोन करना आम तरीका है।
सिम बाइंडिंग एक हार्डवेयर-लेवल चेक जोड़ती है, जिससे अनधिकृत डिवाइस तुरंत ब्लॉक हो जाते हैं।
3️⃣ धोखाधड़ी वाले अकाउंट्स का तुरंत निष्क्रियकरण
अगर कोई सिम KYC उल्लंघन या टेलीकॉम फ्लैग के कारण बंद होती है,
तो उससे जुड़ा ऐप अकाउंट भी अपने आप बंद हो जाएगा।
4️⃣ कानून प्रवर्तन के लिए बेहतर ट्रेसबिलिटी
सिम बाइंडिंग अकाउंट को सीधे प्रमाणित टेलीकॉम सब्सक्राइबर से जोड़ती है।
इससे जांच तेज होती है और स्कैमर्स की गुमनामी टूटती है।
5️⃣ बल्क सिम स्कैम नेटवर्क पर लगाम
स्कैम नेटवर्क हजारों सिम घुमाकर इस्तेमाल करते हैं।
सिम बाइंडिंग हर अकाउंट को एक विशिष्ट सिम से जोड़ती है, जिससे ऑटोमेशन और मास स्कैम मुश्किल हो जाता है।
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बिना सिम बाइंडिंग की मौजूदा चुनौतियाँ
| समस्या | असर |
|---|---|
| सिम बाइंडिंग नहीं | वर्चुअल और एमुलेटेड नंबरों का दुरुपयोग |
| WhatsApp नंबर साझा नहीं करता | एजेंसियों के लिए ट्रेसिंग मुश्किल |
| नए सिम से दोबारा अकाउंट | धोखाधड़ी बार-बार |
| टेलीकॉम KYC और ऐप पहचान अलग | प्रवर्तन कमजोर |
सिम बाइंडिंग के रणनीतिक फायदे
- स्पैम, पहचान की नकली नकल और वित्तीय धोखाधड़ी में बड़ी कमी
- KYC प्रवर्तन और डिजिटल हाइजीन को मजबूती
- सुरक्षित डिजिटल पहचान की दिशा में ठोस कदम
- टेलीकॉम और ऐप प्लेटफॉर्म के बीच क्रॉस-वेरिफिकेशन
- नागरिक सुरक्षा और प्रोएक्टिव धोखाधड़ी पहचान को बढ़ावा
आगे का रास्ता
WhatsApp, Telegram और Fintech ऐप्स जैसे हाई-रिस्क प्लेटफॉर्म्स पर
सिम बाइंडिंग अनिवार्य करने से डिजिटल धोखाधड़ी में उल्लेखनीय गिरावट आ सकती है।
यह सिर्फ एक तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि
डिजिटल जवाबदेही और नागरिक सुरक्षा की दिशा में जरूरी सुधार है।










