लाल आतंक का सबसे बड़ा नुकसान है रमन्ना की मौत

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नई दिल्ली, इंडिया विस्तार। करीब 8 साल से माओवाद के दंडकारण्य स्पेशल जोन कमेटी का सचिव और एक करोड़ रुपये से ज्यादा का इनामी नक्सल नेता रमन्ना उर्फ रावलु श्रीनिवास की आखिरकार मौत हो गई। हांलाकि पुलिस अभी नक्सलियों के औपचारिक बयान का इंतजार कर रही है। उसकी मौत से लाल आतंक को बहुत ब़ड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा।

माओवादी अक्सर अपने बड़े नेताओं की मृत्यु पर बयान जारी करते हैं।

छतीसगढ़ में नक्सल ऑपरेशन के प्रमुख अफसर सुंदरराज के मुताबिक सबूत हैं कि उसकी मौत हो गई है लेकिन अभी नक्सलियों ने औपचारिक पुष्टि नहीं की है।

सीआरपीएफ के आईजी जीएचपी राजू के मुताबिक खुफिया जानकारी की मानें तो रमन्ना बाई ब्लड प्रेशर औऱ मधुमेह रोग से पीड़ित था। पिछले सप्ताह उसका शूगर लेबल काफी बढ़ गया था जिसकी वजह से उसकी तबियत बेहद खराब हो गई। उसे नक्सलिय़ों के पास मौजूद डॉक्टर ने रमन्ना को जब्बागेट्टा गांव में जाकर देखा। इस डॉक्टर ने रमन्ना को वहां से दूर जाने की सलाह दी क्योंकि सुरक्षा बलों के ऑपरेशन में रमन्ना को खतरा हो सकता था। इसके बाद रमन्ना की निजी टीम ने रमन्ना को स्ट्रेचर पर ले जाने के लिए कोर एरिया में एक अन्य गुप्त स्थान पर रात को आवाजाही शुरू कर दी क्योंकि उसकी हालत तेजी से बिगड़ती जा रही थी।

सूत्रों के मुताबिक 8 दिसंबर की रात जैसा रमन्ना ने सीने में दर्द की शिकायत की। रमन्ना को देखने वाले नक्सली डॉक्टर ने उसे रिवाइव करने की कोशिश की, लेकिन रमन्ना गिर गया और भीषण दिल का दौरा पड़ने से उसकी मौत हो गई।

पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज ने बताया कि रमन्ना माओवादियों के केंद्रीय समिति का सदस्य था। पिछले कुछ दशक से बस्तर क्षेत्र में हुई बड़ी घटनाओं का वह मास्टरमाइंड था। इनमें 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की मौत तथा वर्ष 2013 में दरभा घाटी नक्सली हमला शामिल है।इस हमले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मारे गए थे।

रमन्ना तेलंगाना के वारंगल जिले का निवासी था। छत्तीसगढ़ में उसपर 40 लाख रुपए का इनाम है।

उसकी पत्नी सावित्री उर्फ सोढ़ी हिडमे एक स्थानीय आदिवासी महिला है। वह दक्षिण बस्तर में प्रमुख माओवादी नेता है तथा किस्टाराम एरिया कमेटी में सचिव के रूप में काम कर रही है। रमन्ना का बेटा रंजीत अपनी मां के समूह में सदस्य के रूप में सक्रिय है।

रमन्ना को क्षेत्र में होने वाले नक्सली घटनाओं का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता था। वह लंबे समय से बस्तर और पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा के सीमावर्ती क्षेत्रों में नक्सली आंदोलन की अगुवाई कर रहा था।

रमन्ना की मौत के बाद स्थानीय नेता कैडर में अपने पद को बढ़ाने की कोशिश करेंगे। पिछले कुछ समय से तेलंगाना और आंध्रप्रदेश के नक्सलियों को ज्यादा महत्व मिलने के कारण नक्सली आंदोलन को अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ रहा है।

रमन्ना पिछले लगभग 30 वर्ष से बस्तर क्षेत्र में सक्रिय था। उसने बस्तर में जोनल कमेटी की स्थापना में तथा माओवादी आंदोलन को बढ़ाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। रमन्ना की मृत्यु से बस्तर क्षेत्र में माओवादी आंदोलन का संगठनिक स्वरूप बहुत कमजोर होगा।

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